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मधुशाला (१४)

१४)

लाल सूरा की धार लपट-सी
कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको
कह देना उर का छाला,

दर्द नशा है इस मदिरा का
विगतस्मृतियाँ - साकी - है;

पीड़ा में आनंद जिसे हो,
आए मेरी मधुशाला|